इस वर्ष विश्व के कोने-कोने से लाखों हुज्जाजे कराम हज का तराना अर्थात् लब्बैक पढ़ते हुए मक्का मुकर्रमा नहीं पहुंच पायेंगे
डाक्टर मोहम्मद नजीब कासमी सम्भली
हज के महीनों में शव्वाल का महीना समाप्त होने के बाद जीका'दा महीना के आरम्भ होने पर विश्व में कोरोना वबाई मर्ज के फैलाव के कारण सऊदी हुकूमत ने यह फैसला किया है कि इस वर्ष (2020 - 1441) सऊदी अरब में रहने वाले विभिन्न देशों के नागरिक ही केवल सीमित संख्या में हुज्जाजे कराम की हिफाज़त और सालमीयत के लिए एहतियाती तदाबीर पर अमल करते हुए हजे बैतुल्लाह अदा कर सकेंगे। अर्थात् इस वर्ष विश्व के चप्पे-चप्पे से अल्लाह के मेहमान हज की अदायगी नहीं कर सकेंगे। "हज", नमाज, रोजा और जकात की तरह ही इस्लाम का एक महत्वपूर्ण बुनियादी रुक्न है। सम्पूर्ण जीवन में एक बार प्रत्येक उस व्यक्ति पर हज फर्ज (अनिवार्य) है जिसको अल्लाह ने इतना माल दिया हो कि अपने घर से मक्का मुकर्रमा तक जाने आने पर सक्षम हो और अपने परिवार का भरन पोसन वापसी तक सहन कर सकता हो। अल्लाह तआला का संदेश है: लोगों पर अल्लाह तआला का हक है कि जो उसके घर तक पहुंचने का सामर्थ्य रखते हों वह उसके घर का हज करें और जो व्यक्ति उसके हुक्म को मानने से इंकार करे, उसे मालूम होना चाहिए कि अल्लाह तआला तमाम दुनिया वालों से बेनियाज है। (सूरा आल इमरान - 97)
मार्च के महीने से ऊमरा पर पाबंदी और इस वर्ष विदेशों से हुज्जाजे कराम के हज की अदायगी ना करने पर सऊदी हुकूमत और सऊदी अवाम को अरबों रेयाल का घाटा है। पिछले कुछ वर्षों से करीब 25 - 30 लाख हुज्जाजे कराम हज की अदायगी करते हैं और रमजान के महीने में ऊमरा करने वालों की संख्या उस से भी कहीं अधिक होती है। सऊदी हुकूमत ने कोरोना वबाई मर्ज के कारण देश में लागू पाबंदियां तीन महीने के बाद अब समाप्त कर दी हैं, यहां तक कि खेलों पर लागू पाबंदियां भी 21 जून से उठाली हैं। यद्यपि कि अभी तक मस्जिदे हराम (मक्का मुकर्रमा) आम लोगों के लिए नहीं खोली गई है।
बैतुल्लाह (खाना-ए-काबा) की तामीर के बाद अल्लाह तआला ने हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को हुक्म दिया: लोगों में हज का ऐलान कर दो कि वो पैदल तुम्हारे पास आएंऔर दूर दराज़ के रास्तों से सफर करने वाली उन ऊँटनियों पर सवार होकर आएं (जो लम्बे सफर से दुबली हो गई हों) (सूरह अलहज्ज 27)। हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने कहा कि ऐ मेरे रब.! मैं कैसे ये पैगाम लोगों तक पहुँचाऊं? आप से कहा गया कि आप हमारे हुक्म के मुताबिक़ आवाज़ लगाएँ, पैगाम को पहुँचाना हमारे ज़िम्मे है। चुनांचे हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने आवाज़ लगाई, अल्लाह तआला ने अपनी कुदरत से दुनिया के कोने-कोने तक पहुँचाई यहाँ तक कि क़यामत तक जिस शख़्स के मुक़द्दर में भी हज्जे बैतुल्लाह लिखा हुआ था उसने इस आवाज़ को सुनकर लब्बैकक कहा।
जिस तरह दुनिया में बैतुल्लाह (खाना-ए-काबा) का तवाफ़ किया जाता है इसी तरह आसमानों पर अल्लाह तआला का घर है जिसको “बैतुलमामूर” कहा जाता है, उसका हर समय फ़रिश्ते तवाफ़ करते हैं, इस घर के बारे में अल्लाह तआला क़ुरान शरीफ़ में इरशाद फरमाता है: “और क़सम हे “बैतुल मामूर” की”, (सुरह: तूर -4). जब हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को “मेराज” व “इस्रा” की रात में “बैतुल मामूर” ले जाया गया तो हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम से पूछा यह क्या है? हज़रत जिब्राईल ने कहा कि यह “बैतुल मामूर” है, हर रोज़ सत्तर हज़ार फ़रिश्ते इसका तवाफ़ करते हैं, फिर उनकी बारी दोबारा क़यामत तक नहीं आती”। हदीस की मशहूर किताबों में यह हदीस मौजूद है, “तबरी की रिवायत से मालूम होता है कि बैतुल मामूर बैतुल्लाह (खाना-ए-काबा) के बिल्कुल ऊपर आसमान पर है।
नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया जिस शख्स ने महज़ अल्लाह की ख़ुशनूदी के लिए हज किया और उस दौरान कोई बेहुदा बात या गुनाह नहीं किया तो वह (पाक होकर) ऐसा लौटता है जैसा माँ के पेट से पैदा होने के रोज (पाक था) (बुखारी व मुस्लिम)
दुनिया की शुरुआत से लेकर अब तक इस पाक घर का तवाफ, ऊमरा और हज अदा किया जाता है और इनशाअल्लाह कयामत से पहले बैतुल्लाह के आसमानों पर उठाए जाने तक यह सिलसिला जारी रहेगा। यकीनन कुछ हालात में हज की अदायगी रुकी भी है, मगर सही बुखारी और दूसरी हदीस की किताबों में उल्लेख रसूल-अल्लाह स० के इर्शाद: "कयामत उस वक्त तक कायम नहीं होगी जब तक कि बैतुल्लाह का हज बंद ना हो जाए।"से यह बात स्पष्ट है कि हज का ना होना या हज को स्थगित करना या आजमीने हज को रोकना किसी भी हाल में अच्छी अलामत नहीं है चाहे उसके कुछ भी कारण हों। अल्लाह तआला हम सब की हिफाज़त फरमाए, आमीन!
Dr. Mohammad Najeeb Qasmi
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